प्रोस्टेट कैंसर पुरुषों में होने वाली एक आम बीमारी है।
स्टडी के अनुसार लगभग 8 में से 1 पुरुष प्रोस्टेट कैंसर की चपेट में आते हैं। हालांकि, जहाँ तक बात इस कैंसर से होने वाली मौत की है तो इस बीमारी के 41 में से 1 मामले में मरीज की मौत होती है। दरअसल, इस बीमारी को अगर समय पर पहचान लिया जाये तो व्यक्ति की जान बचायी जा सकती है। इसके लिए प्रोस्टेट कैंसर के चेतावनी संकेत, कारण और इलाज को समझना जरूरी है और यह आर्टिकल इस मामले में आपकी मदद करेगा।
सबसे पहले जानें प्रोस्टेट कैंसर क्या है? (What is Prostate Cancer)
प्रोस्टेट, मूत्राशय के नीचे और मलाशय के सामने होता है। प्रोस्टेट के ठीक पीछे सेमिनल वेसिकल्स नामक ग्रंथियाँ होती हैं, जो शुक्राणुओं के लिए ज्यादा मात्रा में तरल पदार्थ बनाती हैं। प्रोस्टेट कैंसर तब शुरू होता है, जब प्रोस्टेट ग्रंथि (Prostate Gland) में कोशिकाएं अनियंत्रित रूप से बढ़ने लगती हैं और फिर धीरे-धीरे इसके लक्षण नजर आने शुरू हो जाते हैं।
प्रोस्टेट कैंसर के लक्षण (Symptoms of Prostate Cancer)

प्रोस्टेट कैंसर के शुरुआती चरणों में अक्सर कोई खास लक्षण नजर नहीं आते हैं लेकिन स्क्रीनिंग के जरिए उन बदलावों का पता चल सकता है, जो कैंसर की तरफ इशारा करते हैं। स्क्रीनिंग में एक परीक्षण होता है जो रक्त में पीएसए (Prostate specific Antigen) के स्तर को मापता है। अगर जाँच में पीएसए का स्तर ज्यादा होता है, तो यह कैंसर की उपस्थिति को दर्शा सकता है।
यदि किसी व्यक्ति को प्रोस्टेट कैंसर होता है, तो उनमें नीचे बताये गये लक्षण नजर आ सकते हैं-
- पेशाब शुरू करने के दौरान दर्द होना
- रात के समय बार-बार पेशाब की इच्छा
- पेशाब की धार का काम होना
- पेशाब या शुक्राणु में खून निकलना
- पेशाब में दर्द महसूस होना
- पीठ या कूल्हों में दर्द
हालांकि, कैंसर के आकार और वो शरीर के किस जगह पर फैला है, उसके आधार पर लक्षणों में अंतर हो सकता है। प्रोस्टेट कैंसर अगर एडवांस स्टेज में पहुँच जाये, तो निम्नलिखित लक्षण दिखाई दे सकते हैं-
- हड्डियों में दर्द
- बिना कारण वजन घटना
- अत्यधिक थकान
वैसे तो यह बीमारी किसी को भी हो सकती है लेकिन कुछ रिस्क फैक्टर्स इस बीमारी का खतरा बढ़ा सकते हैं।
क्या हैं प्रोस्टेट कैंसर के रिस्क फैक्टर? (Risk Factors of Prostate Cancer)

1. आयु: बढ़ती उम्र इस बीमारी का सबसे बड़ा रिस्क फैक्टर है। वैसे तो 60 वर्ष की आयु के बाद इस कैंसर का जोखिम बढ़ जाता है, लेकिन कुछ मामलों में 45 वर्ष से पहले भी यह बीमारी नजर आ सकती है।
2. पारिवारिक इतिहास: अगर परिवार में प्रोस्सेट कैंसर का इतिहास रहा है, तो नयी पीढ़ी को भी यह रोग हो सकता है।
3.आनुवांशिक कारक (Genetic Cancer): बीआरसीए1 (BRCA1)और बीआरसीए2 (BRCA2) जीन में परिवर्तन समेत अन्य जेनेटिक फैक्टर्स इस बीमारी के जोखिम को बढ़ा सकते हैं। इन जीनों में म्यूटेशन से स्तन कैंसर (Breast Cancer) की संभावना भी बढ़ जाती है। लिंच सिंड्रोम के साथ पैदा हुए पुरुषों में प्रोस्टेट और अन्य कैंसर का जोखिम भी अधिक होता है।
4. आहार: कुछ शोधों की मानें तो ज्यादा मात्रा में फैट का सेवन प्रोस्टेट कैंसर के खतरे को बढ़ा सकता है।
इन सबके अलावा मोटापा, धूम्रपान, शराब का सेवन, केमिकल के संपर्क में आना, प्रोस्टेट की सूजन या यौन संचारित रोग (Sexually Transmitted Disease) प्रोस्टेट कैंसर का खतरा बढ़ा सकते हैं।
प्रोस्टेट कैंसर का इलाज (Treatment of Prostate Cancer)

प्रोस्टेट कैंसर का इलाज, उसके स्टेजेस और उसके साथ-साथ ग्लीसन स्कोर और पीएसए के स्तर समेत अन्य कारकों पर निर्भर करता है। इसके इलाज के लिए नीचे बताए गए तरीकों को अपनाया जा सकता है।
प्रारंभिक स्टेज में प्रोस्टेट कैंसर का इलाज
- सर्जरी : अगर किसी व्यक्ति को सर्जरी की ज़रूरत हो, तो एक यूरोलॉजिस्ट की देखरेख में यह प्रक्रिया की जाती है। वे ट्यूमर को हटाने के लिए रेडिकल प्रोस्टेटेक्टॉमी कर सकते हैं। इस प्रक्रिया में आस-पास के ऊतक, सेमिनल वेसिकल्स और आस-पास के लिम्फ नोड्स को भी हटाना शामिल हो सकता है।
- रेडिएशन थेरेपी (Radiation Therapy) : कैंसर कोशिकाओं को मारने या उन्हें बढ़ने से रोकने के लिए रेडिएशन थेरेपी का उपयोग किया जाता है।
- हार्मोनल उपचार (Hormonal Treatment) : हार्मोन थेरेपी शरीर में एण्ड्रोजन के स्तर को कम करती है या उसके उत्पादन को रोकती है।
एडवांस स्टेज में प्रोस्टेट कैंसर का इलाज
- कीमोथेरेपी (Chemotherapy): यह विकल्प कैंसर कोशिकाओं की वृद्धि को रोकने में मदद करता है।
- हार्मोनल थेरेपी (Hormonal Therapy): इस थेरेपी की मदद से कैंसर को बढ़ने से रोका जाता है। प्रोस्टेट कैंसर के ट्यूमर सिकुड़ने के कारण ऐसा हो सकता है।
- इम्यूनोथेरेपी (Immunotherapy): यह विधि कैंसर से लड़ने में मदद करने के लिए व्यक्ति की प्रतिरक्षा प्रणाली का उपयोग करती है।
निष्कर्ष
प्रोस्टेट कैंसर जानलेवा तभी साबित होता है, जब इसके इलाज में लापरवाही बरती जाये। समय पर इलाज होने से लोगों की जान बच सकती है। इसीलिए, सावधान रहें और समय रहते इसके लक्षण को पहचानें।